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Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 : Maata Ka Anchal (माता का आँचल)
शिवपूजन सहाय
जन्म – 9 अगस्त 1893 जन्मस्थान – उनवांस, शाहाबाद, बिहार,
कार्य – उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार,
लेखन शैली – सरल, सुगम और परंपरागत भारतीय संस्कृति,
महत्वपूर्ण कृतियाँ/रचनायें – ‘भूला बिसरा’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘दीपशिक्षा’, ‘मरणोत्तर’ और ‘स्वर्णधारा’ आदि,
सम्मान – साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1960 में पद्मभूषण, 1998 में सम्मान में जारी डाक टिकट जारी,
मृत्यु – 21 जनवरी 1963 मृत्यु स्थान – पटना
जीवन परिचय :
शिवपूजन सहाय जी हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानी लेखक, सम्पादक और पत्रकार थे, शिवपूजन सहाय जी का जन्म 9 अगस्त 1893 को उनवांस, शाहाबाद, बिहार में हुआ था, और उनकी मृत्यु 21 जनवरी 1963 को पटना, बिहार में हुई। शिवपूजन सहाय जी के बचपन का नाम भोलानाथ था। वे हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका मतवाला के संपादक-मंडल में भी रहे थे। शिवपूजन सहाय जी ने अपने जीवन के दौरान कई महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की जो हिंदी साहित्य के इतिहास में अमर हुई हैं। उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं मे से कुछ के शीर्षक निम्नप्रकार हैं: ‘भूला बिसरा’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘दीपशिक्षा’, ‘मरणोत्तर’ और ‘स्वर्णधारा’।
शिवपूजन सहाय जी हिंदी साहित्य के लिए अपने अनुभवों और विचारों को दर्शाने के लिए अपनी रचनाओं में विभिन्न सामाजिक मुद्दों को उठाया करते रहे। उनकी लेखनी अत्यंत सरल, सुगम और परंपरागत भारतीय संस्कृति को दर्शाती है। शिवपूजन सहाय जी को हिंदी साहित्य के लिए दिए गए अपने योगदान के लिए साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1960 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
उनकी रचनाओं में विश्वास के साथ साथ गंभीरता की भावना थी, जो समाज को एक सकारात्मक दृष्टिकोण देती थी। शिवपूजन सहाय जी ने अपने जीवन के दौरान हिंदी साहित्य के लिए अनेकों महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो हिंदी साहित्य के लिए स्थायी, सराहनीय और यादगार रहेंगे।
कक्षा-10 हिंदी-कृतिका
अध्याय 1 : माता का आंचल
प्रश्न 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
प्रश्न 2.आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?
उत्तर- शिशु अपनी स्वाभाविक आदत के अनुसार अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने में रुचि लेता है। उनके साथ खेलना अच्छा लगता है। अपनी उम्र के साथ जिस रुचि से खेलता है वह रुचि बड़ों के साथ नहीं होती है। दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक भी है-बच्चे को अपने साथियों के बीच सिसकने या रोने में हीनता का अनुभव होता है। यही कारण है कि भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है।
प्रश्न 3.आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब -तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर- परीक्षा दृष्टि से उपयोगी नहीं है। किन्तु विद्यार्थी स्वविवेक और अनुभव के आधार पर लिखने की कोशिश करें।
प्रश्न 4. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर- भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में कल्पना से अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में परिवार से लेकर दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे खेलने की स्वच्छंदता थी। बाहरी घटनाओं-अपहरण आदि का भय नहीं था। खेल की सामग्रियाँ बच्चों द्वारा स्वयं निर्मित थीं। घर की अनुपयोगी वस्तु ही उनके खेल की सामग्री बन जाती थी, जिससे किसी प्रकार ही हानि की संभावना नहीं थी। धूल- मिट्टी से खेलने में पूर्ण आनंद की अनुभूति होती थी । न कोई रोक, न कोई डर, न किसी का निर्देशन । जो था वह सब सामूहिक बुधि की उपज थी।
आज भोलानाथ के समय से सर्वथा भिन्न खेल और खेल सामग्री और ऊपर से बड़ों का निर्देशन और सुरक्षा हर समय सिर पर हावी रहता है। आज खेल सामग्री स्वनिर्मित न होकर बाज़ार से खरीदी हुई होती है। खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अतः स्वच्छंदता नहीं होती है। धूल-मिट्टी से बच्चों का परिचय ही नहीं होता है।
प्रश्न 5.पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों?
उत्तर- पाठ का सबसे रोमांचक प्रसंग वह है जब एक साँप सब बच्चों के पीछे पड़ जाता है। तब वे बच्चे किस प्रकार गिरते पड़ते भागते हैं और माँ की गोद में छिपकर सहारा लेते हैं- यह प्रसंग पाठक के हृदय को भीतर तक हिला देता है। । इस पाठ में गुदगुदाने वाले प्रसंग भी अनेक हैं। विशेष रूप से बच्चे के पिता का मित्रतापूर्वक बच्चों के खेल में शामिल होना मन को छू लेता है। जैसे ही बच्चे भोज, शादी या खेती का खेल खेलते हैं, बच्चे का पिता बच्चा बनकर उनमें शामिल हो जाता है। पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत सुखद अनुभव है जो सभी पाठकों को गुदगुदा देता है।
प्रश्न 6.इस उपन्यास के अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।
उत्तर- आज की ग्रामीण संस्कृति को देखकर और इस उपन्यास के अंश को पढ़कर ऐसा लगता है कि कैसी अच्छी रही होगी वह समूह – संस्कृति, जो आत्मीय स्नेह और समूह में रहने का बोध कराती थी। आज ऐसे दृश्य दिखाई नहीं देते हैं। पुरुषों की सामूहिक- कार्य प्रणाली भी समाप्त हो गई है। अतः ग्रामीण संस्कृति में आए परिवर्तन के कारण वे दृश्य नहीं दिखाई देते हैं जो तीस के दशक में रहे होंगे-
1.आज घर सिमट गए हैं। घरों के आगे चबूतरों का प्रचलन समाप्त हो गया है।
2.आज परिवारों में एकल संस्कृति ने जन्म ले लिया, जिससे समूह में बच्चे अब दिखाई नहीं देते।
3.आज बच्चों के खेलने की सामग्री और खेल बदल चुके हैं। खेल खर्चीले हो गए हैं। जो परिवार खर्च नहीं कर पाते हैं वे बच्चों को हीन भावना से बचाने के लिए समूह में जाने से रोकते हैं।
4.आज की नई संस्कृति बच्चों को धूल-मिट्टी से बचना चाहती है।
5.घरों के बाहर पर्याप्त मैदान भी नहीं रहे, लोग स्वयं डिब्बों जैसे घरों में रहने लगे हैं।
प्रश्न 7.पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरीमें अंकित कीजिए ।
उत्तर– छात्र स्वयं अपने अनुभव अंकित करें।
प्रश्न 8.यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य अक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- पिता का अपने साथ शिशु को नहला – धुलाकर पूजा में बैठा लेना, माथे पर तिलक लगाना फिर कंधे पर बैठाकर गंगा तक ले जाना और लौटते समय पेड़ पर बैठाकर झूला झुलाना कितना मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है।
पिता के साथ कुश्ती लड़ना, बच्चे के गालों का चुम्मा लेना, बच्चे के द्वारा पूँछे पकड़ने पर बनावटी रोना रोने का नाटक और शिशु को हँस पड़ना अत्यंत जीवंत लगता है।
माँ के द्वारा गोरस-भात, तोता-मैना आदि के नाम पर खिलाना, उबटना, शिशु का शृंगार करना और शिशु का सिसकना, बच्चों की टोली को देख सिसकना बंद कर विविध प्रकार के खेल खेलना और मूसन तिवारी को चिढ़ाना आदि अद्भुत दृश्य उकेरे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशव की याद दिलाते हैं।
प्रश्न 9.माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर- इस पाठ के लिए माता का अँचल’ शीर्षक उपयुक्त नहीं है। इसमें लेखक के शैशव की तीन विशेषताओं का वर्णन हुआ है
- बच्चे का पिता के साथ लगाव,
- शैशव की मस्त क्रीड़ाएँ,
- माँ का वात्सल्य,
- ‘माता का अँचल’ इन तीनों में से केवल अंतिम को ही व्यक्त करता है। अत: यह एकांगी और अधूरा शीर्षक है। इसका अन्य शीर्षक हो सकता है,
- मेरा शैशव कोई लौटा दे मेरे रस-भरे दिन !
प्रश्न 10.बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?
उत्तर- शिशु की जिद में भी प्रेम का प्रकटीकरण है। शिशु और माता-पिता के सानिध्य में यह स्पष्ट करना कठिन होता है कि माता-पिता का स्नेह शिशु के प्रति है या शिशु का माता-पिता के प्रति दोनों एक ही प्रेम के सम्पूरक होते हैं।
• शिशु की मुस्कराहट, शिशु को उनकी गोद में जाने की ललक उनके साथ विविध | क्रीड़ाएँ करके अपने प्रेम के प्रकटीकरण करते हैं।
• माता-पिता की गोद में जाने के लिए मचलना उसका प्रेम ही होता है। इस प्रकार माता-पिता के प्रति शिशु के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना कठिन होता है।
प्रश्न 11. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है ?
उत्तर- हमारा बचपन इस पाठ में वर्णित बचपन से पूरी तरह भिन्न है। हमें अपने पिता का ऐसा लाड़ नहीं मिला। मेरे पिता प्रायः अपने काम में व्यस्त रहते हैं । प्रायः वे रात को थककर ऑफिस से आते हैं। वे आते ही खा-पीकर सो जाते हैं। वे मुझसे प्यार-भरी कुछ बातें जरूर करते हैं। मेरे लिए मिठाई,चाकलेट, खिलौने भी ले आते हैं। कभी-कभी स्कूटर पर बिठाकर घुमा भी आते हैं, किंतु मेरे खेलों में इस तरह रुचि नहीं लेते। वे हमें नंग-धडंग तो रहने ही नहीं देते। उन्हें मानो मुझे कपड़े से ढकने और सजाने का बेहद शौक है। मुझे बचपन में ए-एप्पल, सी-कैट रटाई गई। हर किसी को नमस्ते करनी सिखाई गई। दो ढाई साल की उम्र में मुझे स्कूल भेजने का प्रबंध किया गया। तीन साल के बाद मेरे जीवन से मस्ती गायब हो गई। मुझे मेरी मैडम, स्कूल – ड्रेस और स्कूल के काम की चिंता सताने लगी। तब से लेकर आज तक मैं 90% अंक लेने के चक्कर में अपनी मस्ती को अपने ही के नीचे रौंदता चला आ रहा हूँ । मुझे हो – हुल्लड़ करने का तो कभी मौका ही नहीं मिला। शायद मेरा बचपन बुढ़ापे में आए ? या शायद मैं अपने बच्चों या पोतों के साथ खेल कर सकें।
प्रश्न 12. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए ।
उत्तर- फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनायें निम्नलिखित है – मैला आँचल और बलचनमा।
1.फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आँचल’ पठनीय है। विद्यालय के पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
2.नागार्जुन का उपन्यास ‘बलचनमा’ आँचलिक है। उपलब्ध होने पर पढ़ें।